मजदूरों की हालात ऐसी क्यों?
- लॉकडाउन को लगभग 62 दिन हो चुके है और आप भी कही न कही अब थक चुके है , वही रोज सुबह उठना रोज वही सब काम , हर रोज़ उम्मीद लगाना कब यह खुले हम बाहर वहां उस रेस्टॉरेंट में खाने जाए या वहां से शॉपिंग करे लेकिन आप इन शौक भरी चीज़ों में एक वर्ग को भूल रहे जिसने अपनी दिन रात मेहनत से वो रेस्टॉरेंट बनाया जिसमे आप खाना खाना चाहते है और वही मॉल जिसमे आप शॉपिंग करने जाना चाहते है ! आज वो वर्ग दिक्कतों से जूंज रहा है और उसका भी एक वो तबका जो दूसरे राज्यों में अपने परिवारों से दूर जाकर मजदूरी करते है , आज वही प्रवासी मजदूर इतना मजबूर है कि उसे ट्रको में घासफूस की तरह भरकर बड़ी बड़ी रकम चुकाकर अपने घरों तक पहुचना पड़ रहा है औऱ कई मजदूरों ने तोह अपनी जान भी गवा दी है , आम आदमी इतना कुछ झेल रहा है बार बार लोग एक ही सवाल उनसे कर रहे है कि मजदूरों को इतनी जल्दी क्यों है वापस आने की , तो एक बार सोचिए जब आप बहार से घूम फिरके आते है तो आपको कितनी चाह होती है कि जलद से जल्द घर पहुच जाए और वो तोह मेहनत करने वाले मजदूर है !
- अब सवाल सबके मन मे है कि सरकार की क्या ज़िममदेरी थी और उसने कैसे अपनी ज़िममेंदारी निभाई.! यह प्रश्न आम आदमी द्वारा ही उठाया गया है ! जितना मुझे अपनी समझ से लगता है यहां फेल सरकार नही हुई यहा फेल सरकारो का तालेमल हुआ जिनके बीच पीसा एक आम आदमी है ! कभी केंद्र सरकार ने मजदूरों के लिए ट्रेन चलाई तोह राज्य सरकारें उन्हें चलाने की अनुमति नही देती और कई जगह विपक्ष बसों का हेरफेर कर जनता को घुमरहा करता है.
Source - Thehindu
- आप सोचिए एक बार उस मजदूर पर क्या बीतती होगी जिसने अपना ये कीमती वोट जो उसकी सबसे बड़ी ताकत है उसने जब ऐसे लोगो को दिया होगा जो न तो बसों का व्यवस्था करते है और नाही ट्रेनों के संचालन के लिए अनुमति देते है ! अगर आपको ही आपका साथी मुसीबत के समय छोड़ जाए तो आप कहते है कि वक़्त आने पर सब रंग दिखाते है तो कुछ वैसे ही कुछ नेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए इन मजदूरों को सड़ने ओर मरने के लिए छोड़ दिया ! आज आये दिन मजदूर मर रहे है और हैरानी की बात देखिए कि देश की मीडिया जो एक तरफ लोकतांत्रिक देश में अपना बड़ा रोल अदा करती है जहाँ आज वो मजदूरों को सुनती है पूछती है कहा से आये हो ,कहा जा रहे हो पर मानवता के रूप में इतना नही कहती कि आओ बैठ जाओ आगे तक छोड़ दे तुम्हे .! यह मानवता जो कि हिन्दुस्तान की संस्कृति का एक अभिन्न अंग है आज वो गायब होती जा रही है ! आज नेता हो या आदमी सब को दूसरे को कोसने में लगेे है , सब अपना पल्ला झाड़कर बात एक दूसरे पर थोप देते हैै ! एक मनुष्य का कर्तव्य है कि वह सही को सही और गलत को गलत कहे !मजदूरो की सहायता अब मानवता के भाव से भी की जानी चाइए.! जो आज समाज के कई लोग कर भी रहे है .! मजदूरों की ये हालात पर हो रही राजनीति को समझें और ऐसे नेताओ का बहिष्कार करे जो मुसीबत के समय जनता की सेवा नही कर सकते है !
बढ़िया।
ReplyDeleteगरीबों और असहाय मजदूरों की निसंदेह सहायता कि जानी चाहिए। परन्तु उनका क्या जिन्होंने चैत्र प्रतिपदा यानी लाकडाउन से १ सप्ताह पहले ही लोन लेकर भारी किराए पर उधार का सामान दुकान में भर कर व्यवसाय चालू किया ही था कि सब बंद करना पड़ गया।
अब घर बैठे ही किश्त, किराया, पगार, उधार सब क्या बेच कर चुकाएगा?
मान लो की मार्केट खुल भी गई तो ग्राहक किधर होंगे?
ना तो वो व्यक्ति मुफ्त के राशन की लाइन में लग पाएगा और ना मनरेगा आदि की सुविधा ही ले सकता है?
ऐसे लोगों के लिए भी सरकार के पास कुछ होगा कभी?
mindblowing
Deletemindblowing
DeleteNice
ReplyDeleteShi khre Ho ansh
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteGreat initiative
ReplyDeleteWell said and written ansh
ReplyDeleteReally proud of you as always ❤️
Well said and written too
ReplyDeleteReally proud of you ❤️
Awesome work. God bless🙏
ReplyDeleteGood.
ReplyDeleteWell done ��...
ReplyDeleteWell done 😊
ReplyDeleteGood write up Ansh 👍
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteGood
ReplyDeleteAll this written is really true. We should come forward it is our own country and we should take care of it. We should not depend on others and especially on govt.... And others
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